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अनुवाद क  सम याएँ और समधान

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                    एक भाषा म  अिभ   िवषय , भावना  तथा सवेदना  को जहाँ तक संभव हो उसी क   यु  भाषा-शली म  दूसरी
                    भाषा म   पांत रत करना अनुवाद कहलाता है। मगर यह काय  िजतना सरल  दखाई देता है उतना है नह  । मराठी क
                                                                                                          े
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                     िस द नाटककार मामा वररकर न कहा भी है- "लेखक होना आसान है,  क तु अनवादक होना अ य त क ठन। तथा
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                                                           े
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                     वत   भारत क  थम रा  पित राज    साद जी न भी कहा है- "एक  कार से मौिलक लेख िलखना आसान है, पर
                                                                                     े
                     कसी दूसरी भाषा से अनुवाद करना ब त क ठन होता है। मेरा िनजी अनुभव है  क म अं जी से िह दी म  और िह दी से

                    उतनी आसानी से अनवाद नह  कर सकता, िजतनी आसानी से इन दोन  भाषा  म  िलख या बोल सकता  ँ।"  य  क
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                    दो अलग-अलग भाषा  क  अपनी-अपनी  कित होती है। अपनी श द-संपदा होती है। अपनी िविश  भािषक सरचना,
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                    शली-भंिगमा होती है।
                    सम याए  ँ
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                    1) 'श द  योग क  सम या:- कभी-कभी एक ही भाषा  क दो श द िमल जाते है िजसका अथ  अलग-अलग होता है।
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                    जसे-मराठी म  'नवरा' का अथ  पित है जब क गुजराती म  िनठ ले को 'नवरा' कहते है।
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                    2) मुहावर-कहावते क  सम या:- यधिप मुहावर और कहावते मन य क जीवन क अनुभाव  को संि ि ,  भावशाली
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                     प म  अिभ   करने का साधन रही है। पर तु हर मुहावर या कहावत एक-सा नह  हो सकते ।

                    3) अलंकार क  सम या:- एक भाषा क अलंकार उस भाषा क श द को सौ दय  दान करते है। "कनक-कनक" म  यमक
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                    अलंकार दुहर अथ  म   योग अनवाद क िलए एक गंभीर सम या बन जाती है।
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                    4)शैली क  सम या:- हर भाषा क  अपनी शैली होती है। पर तु अगर एक भाषा म  उपल ध शली िवशषताएँ दूसरी म
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                    न  िमले  तो  अनवाद  करने  म   परशानी  होती  है।  जैस,  िह दी  क   तीन  शैिलयाँ  सं कत-िन   िहदी,  िह दु तानी  और
                                                                                   ृ
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                    बातिचत।
                    समाधान
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                    1)भाषा का  ान:- अनवादक क  सव  थम आव यकता भाषा  का समुिचत  ान हो  य  क उसक सामन दो अलग-
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                    अलग  भाषा   क    कित, वृित,सं कित,  अिभ ि   शि   आ द  बात   से  वा कफ  होना  चािहए  िजससे  भाषा  क
                    वा य-रचना,  श द   क   चयन-   या,  अिभ ि   क  स म  परख  और  वा य-िव यास  एवं  शैिलय   पर  सां कितक
                                                                                                       ृ
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                     भाव का गहन अ ययन हो ता क अपने दािय व  को अ छी तरह िनभा सक।
                    2) िवषय का  ान:-अनुवादक को अनुवाद  साम ी क िवषय का पण   ान होना चािहए। अगर उसे िवषय का अ छी
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                    तरह  ान न हं होगा तो वह मूल रचना क साथ सही  याय नह  कर पायेगा।
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                    3) अिभ ि गत  तट थता:-  उ म  अनुवाद  अनुवादक  क   िच  क  साथ  उसक   यो यता,  िवषय-व तु  क   समझ,
                                                               े
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                    भाषा  क  िनपणता आ द बात  पर ब त कछ िनभ र करता है। अ छ और सफल अनुवाद क  पहचान यही  क पाठक
                                                                                          ु
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                    को पढ़ते समय ऐसा न महसुस हो अनवाद पढ रहे है बि क मूल पाठ पढ़ रहे है। उसम  अपने से कछ न जोड़कर तट था
                                                                                                    े
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                    का  यान रखना चािहए। जसे- अं जी का वा य- To give blank cheque, का िह दी अनुवाद “कोरा चक देना”
                    िलख तो गलत होगा। इसका अनुवाद “खुली छट देना” हो सकता है ।

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                                                                                          ( ोत : िव कपीिडया)



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