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न य पर अनमोल िवचार
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न य भी मानवीय अिभ ि य का एक रसमय दशन है। बालक ज म लेत ही रोकर
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अपने हाथ पैर मार कर अपनी भाव अिभ ि करता है क वह भूखा है । इ ह आिगक
या से नृ य क उ पि ई है।
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न य का वणन हमार पुराण म भी है। समु मंथन क
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प ात जब अमृत िनकला तब दु रा स क अमर
होन क सम या उ प हो गई । तब भगवान
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िव णु ने मोिहनी का प धारण कर अपन मनोहर
न य स सारा अमृत, देवता को िपला दया और
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इस तरह रा स से तीन लोक क र ा क ।
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भारतीय सं कित एवं धम आरभ से ही
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न यकला स जुडे रहे ह । देवराज इ का अ छा
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नत क होना तथा वग से अ सरा क अनवरत
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न य क धारणा स हम भारतीय क ाचीन
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काल से न य स जुडाव क ओर संकत करता है।
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िव ािम – मेनका का भी उदाहरण ऐसा ही
है। प ही है क हम आरभ से ही नृ यकला को धम से जोडत े
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आएं ह ।
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न य एक ऐसी कला है िजससे मन स और शरीर व थ होता है। न य इसान क
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अंदर छप कई अवगुण को दूर कर देता है। दय को सकारा मक ऊजा से भर देता है। नृ य
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खुशी क रसायन को बढा देता है।
ीमती िव ा.एस.राव
सहायक काया लय अधी क
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