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एक पुरानी दो ती
आज याद आयी एक पुरानी दो त क
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जो मरी कतनी करीब थी ।
इतने साल हम साथ थे-
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एक दन भी नह गुज़र िबना दखे ।
कभी सीधी – सादी, वो कभी होिशयार,
कभी िव ानी, वो कभी दाश िनक ।
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रोज़ चले वो मर साथ- साथ
मेरी पगली यारी सहेली ।
मुझे हंसाया कभी वो मुझे लाया
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े रत कया मुझे वो सोचने क िलए ।
बनाया मुझे वो बेहतर इसान
ं
बीत गये समय तेज़ी से और ।
क मत ने बदल दी हमारी राह
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कई र ते गुज़र नयी मंिज़ल म
े
फर भी अकला मेरा मन ।
आज फर याद आयी वो पुरानी दो त क
मेरी पगली यारी सहेली – “ कताब“
ीमती शािलनी टी.एस
उप मंडल अिभयंता ( शा)
मु.म. . का काया लय
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