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स संग का मह व
कबीर संगित साध क , कड़े न िनफल होई ।
च दन होसी बावना, नीब न कहसी कोई ।
अथात कबीर कहत ह क साध क संगित कभी िन फल नह होती। च दन का वृ य द छोटा
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या बौना भी होगा तो भी उसे कोई नीम का वृ नह कहेगा । वह सुवािसत ही रहेगा और
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अपने प रवेश को सुगंध ही देगा। अपन आस-पास को खुशबू स ही भरगा ।
स संग का अथ भारतीय दशन म स य संगित कहा गया है जो तीन कार क मानी जाती है
1. परम स य क संगित, 2. गु क संगित और 3. ि य क ऐसी सभा क संगित जो स य
सुनती है, स य क बात करती है और स य को आ मसात करती है ।
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परम स य क संगित आ याि मक जीवन से संबिधत है । भु ईश न कहा है क ई र को
जानना शा त जीवन है । ई र को जानना परमे र क संगित म रहना है । यह ि थित
मानव जीवन को िनम ल और पिव बनाती है । यह मन क बुर े
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िवचार व पाप को दूर करती है। इससे हम भी अ छ बन जायगे ।
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भगवान क ित ा दखानेवाला मन य द माग दशन म
जीता है । इसक कारण ही उस मन य को आ याि मक
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चंतन िमलता ह ( परलौ कक )। साथ ही उसक अंदर स बुि ,
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परोपका रता, सवा, भलाई आ द भावनाएँ जागृत होती ह । वह
उ म जीवन िबता सकगा । हमार भारत देश म यह भी धारणा है
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क भगवान क संगित म जीना सदैव पूजा और ाथना करना है िजससे आदमी स गुण से
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भर जाता है । एक बार तलसीदास जी से कसी न पछा 'कभी-कभी भि करन को मन नह
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करता फर भी नाम जपने क िलए बठ जात ह , या उसका भी कोई फल िमलता है ?' ी
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तलसी दास जी ने मु करा कर कहा,
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"तलसी मेर राम को रीझ भजो या खीज ।
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भौम पड़ा जामे सभी उ टा सीधा बीज ॥"
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अथात भूिम म जब बीज बोये जाते ह तो यह नह देखा जाता क बीज उ टे पड़े ह या सीध े
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पर फर भी कालातर म फसल बन जाती है, इसी कार नाम सुिमरन कसे भी कया जाये
उसक सुिमरन का फल अव य ही िमलता है ।
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