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गु क संगित हर इसान को उसक िश -दी ा क जीवन काल का एक अंग है । गु क
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चरण म जीन क सोच िजस मन य को होती है वह ब त ही
खुशनसीब है । गु से ा िव ा से कोई भी आसानी से
जीवन क बड़ी से बड़ी सम या को हल कर सकता है । गु
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क स संग से ही हम िववेक, िवनय, नक आ द गुण िमलते ह ।
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यह संगित क पवृ जैसा है । इसम ानहीन मन य को भी
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िव ान बनाने क साम य होती है। गु क स संगित से ही
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मन य म मानवीय गुण उ प होते ह और उसका जीवन
साथ क बनता है। ग ही ह जो भीतर से हाथ का सहारा
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देकर, बाहर से चोट मार-मारकर और गढ़-गढ़ कर िश य क
बुराई को िनकालत ह । कबीर कहते ह ,
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गु समान दाता नह , याचक शीष समान।
तीन लोक क संपदा, सो गु दी ही दान।।
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अथात गु क समान कोई दाता नह और िश य क समान याचक नह ।
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अ छ िम व स न क संगित वा तव म मन य क ि व को िनखारने का काय करती है
और उसम स गुण का संचार करती है ।
एक अं ेज़ी कहावत है, "Show me your friends, I'll show you your future"। हाँ, यह
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पण प से सच है क हमार िम को देखकर कोई यह बता सकता है क हमारा भिव य कसा
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होगा । इस दुिनया म अ छी संगित व अ छ दो त का र ता सबस वाछनीय और िवशेष
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र त म से एक है । अगर हमार साथ कछ अ छ िम ह तो हम ब त सौभा यशाली ह ।
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इस संबंध म कसी किव न इस कार िलखा है :
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म रा त से गुजर रहा था क सामन से एक प रिचत
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िमल गए । उ ह न मुझसे कहा ...
मजे म हो ?
म न जवाब दया ..
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आनद म ँ !
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तो उ ह न कहा
दोन म या फक है ?
तो प रिचत को बताना पड़ा क मजे क िलए पसा चािहए और आनंद क िलए प रवार और
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िम चािहए ! म आनद म ँ .!
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धा म क ंथ म कहा गया है क दुख म जब सभी र तदार, बंध, िम साथ छोड़ देत ह उस
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समय कवल कया आ धम और स संग ही साथ देता है । स संग म बैठन से, सुनने से, बोलन े
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