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से ान क ाि होती है और मन को शाित िमलती है । इस तरह क स संग स हर हाल म
खुश रहन क िव ा िमलती है ।
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कसी भी मन य को स संग क अभाव म कभी-कभी कसंगित म पड़ जाने क सभावना होती
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है। कसंगित उसे बुर रा त पर ले जाती है । जो ि स संगित क िव होता है वह कसगित
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क अधीन होता है । यह कभी भी नह हो सकता क मन य कसंगित क भाव स बच सकता
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है। जो ि दु और दुराचारी ि य क साथ रहते ह वे ि भी दु और दुराचारी बन
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जाते ह । राजा भतह र कहत ह क दुज न िव ान हो तो भी उसे याग देना ही उिचत है ।
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महा मा गाधीजी भी उनक आ मकथा म बतात ह क वे खुद उनक कशोराव था म कसे बुर े
िम क संगित क कारण उनक बात म आकर बुरी आदत म पड़ गए । इन आदत क
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वजह स उ ह न उसक माता-िपता को कहे िबना सोन का एक ज़लेट बेच दया और बाद म
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ब त पछताकर इस क िलए माफ भी मागी ।
धा म क शा म कहा गया है क दु ि से सदैव दूरी बनाकर रखना चािहए। य क दु
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ि को कतनी ही अ छी सगित म रखा जाए वह अ छा नह बन सकता। उसक साथ रहने
से हम ज र नकसान हो सकता है ।
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िन कष क प म कहा जा सकता है क कसी भी तरह, स संग मन को एका करन म मदद
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करता है । स संग क मं हम हमार भीतर क एक शांत कोन म ले जाते ह । स य क खोजी क
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प म , एक स संगी स य को वीकार करता है, चाहे वह कह से भी आए और कसी भी प
म आए । वा तव म स संग शाित का मि दर है एवं खुशी क ज मभूिम ।
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ीमती जयसूया चे लम
सेवािनवृ राजभाषा अिधकारी
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चे ई टलीफो स
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